09/05/2014

दिल-मुहल्ला

दिल के मुहल्ले मे देख आई,
तेरा घर आज भी वहीं बसता है,
वो सजी हुई पतली-सुन्दर सी ग़ली के मोड पर,
खड़े होकर भी तेरा घर दिखता है।

बाहर निकल,
आगे आ,
नज़र उठा,
देख थोड़ी दूर पर तुझे कोई घर दिखता है?

उसकी छत पर ज़रा नज़र डाल,
मेरा दिल तुझे देखने के लिये वहीं खड़ा रहता है।

जब भी तेरे घर के आगे से निकलते हैं,
संभलकर निकलते हैं फिर भी गिर जाते हैं,
रास्ता बदलते हैं, फिर भी तेरे घर की ओर मूड जाते हैं,
कोई तो बताए ऐसा क्या है तुझमें ,
की तुझे देखने भर से होश खुद-ब-खुद उड़ जाते हैं?

दिल के मुहल्ले मे देख आई,
तेरा घर आज भी वहीं बसता है,
वो सजी हुई पतली-सुन्दर सी गली के मोड पर,
खड़े होकर दूर से भी तेरा घर दिखता है।